महर्षि प्रवाह
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ब्रह्मचारी गिरीश जी
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महर्षि जी ने वेद, योग और ध्यान साधना के प्रति जन-सामान्य में बिखरी भ्रान्तियों का समाधान कर उनको दूर किया। वैदिक वांङ्गमय के 40 क्षेत्रों- ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद, शिक्षा, कल्प, व्याकरण, छन्द, ज्योतिष, निरुक्त, न्याय, वैशेषिक, सांख्य, वेदान्त, कर्म मीमांसा, योग, गंधर्ववेद, धनुर्वेद, स्थापत्य वेद, काश्यप संहिता, भेल संहिता, हारीत संहिता, चरक संहिता, सुश्रुत संहिता, वाग्भट्ट संहिता, भावप्रकाश संहिता, शार्ङ्गधर संहिता, माधव निदान संहिता, उपनिषद्, आरण्यक, ब्राह्मण, स्मृति, पुराण, इतिहास, ऋग्वेद प्रातिशाख्य, शुक्ल यजुर्वेद प्रातिशाख्य, अथर्ववेद प्रातिशाख्य, सामवेद प्रातिशाख्य (पुष्प सूत्रम्), कृष्ण यजुर्वेद प्रातिशाख्य (तैत्तिरीय), अथर्ववेद प्रातिशाख्य (चतुरध्यायी) को एकत्र किया, उन्हें सुगठित कर व्यवस्थित स्वरूप दिया और वेद के अपौरुषेय होने की विस्तृत व्याख्या की।
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![गुरुदेव की कृपा का फल गुरुदेव की कृपा का फल](upload/maharishiprawah/mahamedia-prawah-1.jpg)
विश्व में दु:ख का मूल कारण, विश्व में
युद्धों का मूल कारण, महाशक्तियों की भयावह
प्रतिस्पर्धा का मूल कारण, जो कि संपूर्ण विश्व
मानवता में भय उत्पन्न कर रहा है, विश्व में
आतंकवाद का मूल आधार वह संचित तनाव
है जो विश्व की संपूर्ण जनसंख्या द्वारा प्राकृतिक
विधानों का उल्लंघन करने से होता है। इसका
कारण है कि वर्तमान शिक्षा लोगों को प्रकृति के
विधानों के अनुसरण में सहजता से विचार
करने एवं कार्य करने के लिए प्रशिक्षित नहीं
करती।
यह एक बहुत महत्वपूर्ण बिंदु है, जिस
पर हम जोर दे रहे हैं। जीवन में समस्त कष्टों
का, समस्त दु:खों का कारण, समस्त राष्ट्रीय
एवं अंतर्राष्ट्रीय अंतर्द्वन्द्वों का कारण, जीवन में
समस्त दुर्भाग्यों का कारण चाहे यह व्यक्ति के
जीवन में हो अथवा राष्ट्र के जीवन में, प्रकृति
के विधानों का उल्लंघन है एवं इसके पीछे मूल
कारण यह है कि आज की शिक्षा लोगों को
प्रकृति के विधानों के अनुसार कार्य करने के
लिए प्रशिक्षित नहीं करती और इसीलिए विश्व
की संपूर्ण जनसंख्या प्रकृति के नियमों का
उल्लंघन कर रही है। प्रकृति के विधानों के
उल्लंघन से तनाव संचित होता है, संचित
तनाव सामूहिक आपदा में परिणित होता है।
आज विश्व एक भयानक स्थिति का सामना कर
रहा है जहां विश्व चेतना में तनाव काफी अधिक
है।
प्रकृति के नियमों का ज्ञान- मात्र प्रकृति
के विधानों की पूर्ण सामर्थ्य का ज्ञान, मात्र वह
तकनीक जो इस ज्ञान का प्रयोग लोगों को
शिक्षित करने में करेगी एवं उन्हें प्राकृतिक विधान के अनुसरण में सहजता से विचारने एवं
कार्य करने में प्रशिक्षित करेगी, केवल यह
कार्यक्रम पृथ्वी पर स्थायी शांति के मूल में
होगा।
अनेक व्यक्ति पूरे समय विश्व शांति के
विषय में बातें करते रहे हैं, किन्तु सड़क का
कोई व्यक्ति इससे चिंतित नहीं होता। विश्व में
व्यक्ति विश्व शांति के बारे में अधिक चिंता नहीं
करते क्योंकि वे जानते हैं कि विश्व शांति केवल
राष्ट्रों की सरकारों द्वारा स्थापित की जा सकती
है। स्वाभाविक रूप से अंतर्राष्ट्रीय अंतर्द्वंद्व
केवल सरकारों के मध्य में है। इसलिए जब
सरकारें एक दूसरे से द्वंद्व करती हैं तो यह इस
बात का संकेत है कि संपूर्ण विश्व चेतना एक
अत्यंत प्रभावी तनाव से ग्रसित है जो कि मूलत:
विश्व की संपूर्ण जनसंख्या द्वारा प्रकृति के
विधानों के उल्लंघन के फलस्वरूप उत्पन्न होता
है। इसीलिए जब हम भारत को अजेय राष्ट्र
और विश्व में सर्वोच्च शक्तिशाली राष्ट्र बनाने
पर विचार कर रहे हैं तो यह प्रकृति के विधानों
की अजेय शक्ति को प्राप्त कर लेने की हमारी
क्षमता के आधार पर है एवं व्यावहारिक रूप से
इसका उपयोग भारतीय राष्ट्रीय चेतना को
एकीकृत करेगा।
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