महर्षि प्रवाह

ब्रह्मचारी गिरीश जी

समय बहुत बलवान होता है, अपने-अपने समय के बड़े-बड़े सूरमाओं का आज नामो निशान नहीं है। एक गीत में सुना कि अपने समय में जिनकी इच्छा अथवा आज्ञा के बिना उनके साम्राज्य का एक पत्ता भी नहीं हिलता था, वे राजे-महाराजे चक्रवर्ती जो अपने परिवार के हर सदस्य की मृत्यु पर भव्य स्मारक बनवा दिया करते थे, उनका स्वयं का अंतिम संस्कार कहाँ हुआ, ये किसी को ज्ञात नहीं है। समय से कोई विजयी नहीं हो पाया। ऐसा लगता है कि समय, इतिहास और प्रकृति ये तीनों एक ही परिवार के अत्यन्तघनिष्ठ सम्बन्धी हैं। जो कुछ भी घटित हो रहा है, वह इन तीनों के द्वारा या इन तीनों के संज्ञान में हो रहा है।


विश्व में दु:ख का मूल कारण, विश्व में युद्धों
का मूल कारण, महाशक्तियों की भयावह
प्रतिस्पर्धा का मूल कारण, जो कि संपूर्ण विश्व
मानवता में भय उत्पन्न कर रहा है, विश्व में
आतंकवाद का मूल आधार वह संचित तनाव है
जो विश्व की संपूर्ण जनसंख्या द्वारा प्राकृतिक
विधानों का उल्लंघन करने से होता है। इसका
कारण है कि वर्तमान शिक्षा लोगों को प्रकृति के
विधानों के अनुसरण में सहजता से विचार करने
एवं कार्य करने के लिए प्रशिक्षित नहीं करती।
यह एक बहुत महत्वपूर्ण बिंदु है, जिस पर
हम जोर दे रहे हैं। जीवन में समस्त कष्टों का,
समस्त दु:खों का कारण, समस्त राष्ट्रीय एवं
अंतर्राष्ट्रीय अंतर्द्वन्द्वों का कारण, जीवन में
समस्त दुर्भाग्यों का कारण चाहे यह व्यक्ति के
जीवन में हो अथवा राष्ट्र के जीवन में, प्रकृति के
विधानों का उल्लंघन है एवं इसके पीछे मूल कारण
यह है कि आज की शिक्षा लोगों को प्रकृति के
विधानों के अनुसार कार्य करने के लिए प्रशिक्षित
नहीं करती और इसीलिए विश्व की संपूर्ण
जनसंख्या प्रकृति के नियमों का उल्लंघन कर रही
है। प्रकृति के विधानों के उल्लंघन से तनाव
संचित होता है, संचित तनाव सामूहिक आपदा में
परिणित होता है। आज विश्व एक भयानक स्थिति
का सामना कर रहा है जहां विश्व चेतना में तनाव
काफी अधिक है।
प्रकृति के नियमों का ज्ञान- मात्र प्रकृति के विधानों की पूर्ण सामर्थ्य का ज्ञान, मात्र वह तकनीक जो इस ज्ञान का प्रयोग लोगों को शिक्षित करने में करेगी एवं उन्हें प्राकृतिक विधान के अनुसरण में सहजता से विचारने एवं कार्य करने
में प्रशिक्षित करेगी, केवल यह कार्यक्रम पृथ्वी पर स्थायी शांति के मूल में होगा।
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