आवरण कथा

सवा लाख से एक लड़ाऊं गुरु गोविन्द सिंह नाम कहाऊं

‘ गुरु गोबिदं सिहं जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी। यह सिखों के इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण घटना मानी जाती है। गरुु गोबिदं सिहं ने ही गरुु ग्रन्थ साहिब को सिखों का गरुु घोषित किया था। कहा जाता है कि उन्होंने अपना पूरा जीवन लोगों की सेवा करते हएु और सच्चाई की राह पर चलते हएु ही गुजार दिया था। गरुु गोबिदं सिहं का उदाहरण और शिक्षाएं आज भी लोगों को प्रेरित करती है। गरुु गोबिदं सिहं ने खालसा पंथ की रक्षा के लिए कई बार मुगलो का सामना किया था।
सिखों के लिए 5 मर्यदाएँ केश, कड़ा, कच्छा, कृपाण और कंघा धारण करने का आदेश गरुु गोबिदं सिहं ने ही दिया था। इन चीजों को पांच ककार कहा जाता है जिन्हें धारण करना सभी सिखों के लिए अनिवार्य होता है।
गरुु गोबिदं सिहं को ज्ञान, सैन्य क्षमता आदि के लिए जाना जाता है। सस्ंकृत, फारसी, पंजाबी और अरबी भाषाएं भी सीखीं थी। साथ ही धनुष -बाण, तलवार, भाला चलाने में निपुण थे। गुरु गोबिदं सिहं एक लेखक भी थे स्वयं कई ग्रंथो की रचना की थी। गरुु गोबिदं सिहं को विद्वानों का सरंक्षक माना जाता था। कहा जाता है कि उनके दरबार में हमेशा 52 कवियों और लेखकों की उपस्थिति बनी रहती थी। इस लिए उन्हें संत सिपाही भी कहा जाता था। सिख धर्म के लोग गरुु गोबिदं सिहं जयंती को बहुत धूम-धाम से मनाते है। इस दिन घरों और गरुु द्वारों में कीर्तन होता है। खालसा पंथ की झाकियां निकाली जाती है। लंगर का आयोजन किया जाता है। ’’

सवा लाख से एक लड़ाऊं  गुरु गोविन्द सिंह  नाम कहाऊं

विश्व की बलिदानी परम्परा में अद्वितीय होने के साथ-साथ गुरु गोविन्द सिंह एक महान लेखक, मौलिक चिन्तक तथा संस्कृत सहित कई भाषाओं के ज्ञाता भी थे। उन्होंने स्वयं कई ग्रन्थों की रचना की। वे विद्वानों के संरक्षक थे। 52 कवि और साहित्य-मर्मज्ञ उनके दरबार की शोभा बढ़ाते थे। वे भक्ति तथा शक्ति के अद्वितीय संगम थे। इसीलिए उन्हें 'संत सिपाही' भी कहा जाता है।
उन्होंने सदा प्रेम, सदाचार और भाईचारे का सन्देश दिया। किसी ने गुरुजी का अहित करने की प्रयास भी की तो उन्होंने अपनी सहनशीलता, मधुरता, सौम्यता से उसे परास्त कर दिया। गुरुजी की मान्यता थी कि मनुष्य को किसी को डराना भी नहीं चाहिए और न किसी से डरना चाहिए। वे अपनी वाणी में उपदेश देते हैं भै काहू को देत नहि, नहि भय मानत आन। वे बाल्यकाल से ही सरल, सहज, भक्ति-भाव वाले कर्मयोगी थे। उनकी वाणी में मधुरता, सादगी, सौजन्यता एवं वैराग्य की भावना कूटकूटकर भरी थी। उनके जीवन का प्रथम दर्शन ही था कि 'धर्म का मार्ग सत्य का मार्ग है और सत्य की सदैव विजय होती है।'
गुरु गोबिन्द सिंह जी का जन्म- गुरु गोविन्द सिंह का जन्म 22 दिसम्बर 1666 को पटना में नौवें सिख गुरु श्री गुरु तेग बहादुर जी और माता गुजरी के घर हुआ था। उनके जन्म के समय पिता श्री गुरु तेग बहादुर जी असम में धर्म उपदेश के लिये गये थे। उनके बचपन का नाम गोविन्द राय था। पटना में जिस घर में उनका जन्म हुआ था और जिसमें उन्होने अपने प्रथम चार वर्ष बिताये, वहीं पर अब तखत श्री हरिमंदर जी पटना साहिब स्थित है।
1670 में उनका परिवार फिर पंजाब आ गया। मार्च 1672 में उनका परिवार हिमालय के शिवालिक पहाड़ियों में स्थित चक्क नानकी नामक स्थान पर आ गया। चक्क नानकी ही आजकल आनन्दपुर साहिब कहलता है। यहीं पर इनकी शिक्षा आरम्भ हुई। उन्होंने फारसी, संस्कृत की शिक्षा ली और एक योद्धा बनने के लिए सैन्य कौशल सीखा।
गोविन्द राय जी नित्य प्रति आनदपुर साहब में आध्यात्मिक आनन्द बाँटते, मानव मात्र में नैतिकता, निडरता तथा आध्यात्मिक जागृति का सन्देश देते थे। आनन्दपुर वस्तुत: आनन्दधाम ही था। यहाँ पर सभी लोग वर्ण, रंग, जाति, सम्प्रदाय के भेदभाव के बिना समता, समानता एवं समरसता का अलौकिक ज्ञान प्राप्त करते थे। गोविन्द जी शान्ति, क्षमा, सहनशीलता की मूर्ति थे।


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