संपादकीय

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ब्रह्मचारी गिरीश
संरक्षक संपादक

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परमपूज्य महर्षि महेश योगी ने जो कार्य किये वह 'भूतो न भविष्यती' अर्थात् न तो पहले किसी ने किये और मानव जीवन सीमित अवधि का है और संभवत: आने वाले समय में इतना अधिक कार्य करना साधारण-मानव के बस की बात नहीं है अत: हमें यह सीखना होगा की हमारे प्रयास हमारे लक्ष्य प्राप्ति की यात्रा में हमारे सहयात्री रहते हैं और अनवरत प्रयास अवश्य ही लक्ष्य प्राप्ति में सहायक होते हैं।
हृदय में दृढ़ संकल्प था इसलिए राह स्वत: बनती गई। अनेक विघ्न-विरोध के बीच लोगों को सदाचार-सेवा और विश्व शांति का मार्ग की राह दिखाने का असंभव कार्य किया।


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अनवरत प्रयत्न

परमपूज्य महर्षि महेश योगी जी की यात्रा पर जब हम प्रकाश डालने का प्रयास करें तो हम पायेंगे कि उन्होंने सदैव सही समय पर कड़े एवं प्रभावशाली निर्णय लिये समय पक्ष में या विपक्ष में वह सदैव अपने कार्य करते रहे, धन हो या न हो जन-कल्याण के लिए विश्व का भ्रमण किया हजारों-लाखों लोगों के जीवन को आनंदित करने का जो उन्होंने अभियान चलाया उससे वे क्षणिक भी विचलित नहीं हुए। भावातीत ध्यान योग शैली का प्रचार-प्रसार कर अनजाने लोगों के जीवन में अविस्मरणीय परिवर्तन लाने के प्रयास वह निरंतर करते रहे। भारतीय सनातन परंपरा को जीवित रखने के उनके प्रयास अतुलनीय है। महाकुंभ 2025 में अनेकानेक साधु-संतों, गुरुओं, मठाधीशों, परम आदरणीय शंकराचार्यों ने एक स्वर में माना की परमपूज्य महर्षि महेश योगी ने जो कार्य किये वह 'भूतो न भविष्यती' अर्थात् न तो पहले किसी ने किये और मानव जीवन सीमित अवधि का है और संभवत: आने वाले समय में इतना अधिक कार्य करना साधारण-मानव के बस की बात नहीं है अत: हमें यह सीखना होगा की हमारे प्रयास हमारे लक्ष्य प्राप्ति की यात्रा में हमारे सहयात्री रहते हैं और अनवरत प्रयास अवश्य ही लक्ष्य प्राप्ति में सहायक होते हैं। विद्यार्थी परीक्षा को लेकर गंभीर होते है, इसकी तैयारी की दुविधा में उनका-काफी समय और ऊर्जा लग जाती है। युवाओं के पास आधुनिक स्टार्ट-अप क्रांति से जुड़े श्रेष्ठ विचार होते हैं पर स्पष्टता नहीं होती कि प्रारंभ कहाँ से करें? आरंभिक चरण का विलंब कई बार औसत और महान व्यक्ति के भेद को स्पष्ट कर देता है। कुछ लोगों को भविष्य की चिंता सताती है तो कई ऐसे होते है जिन्हें लगता है अभी तो समय है ओर वे टालमटोल की राह पर बढ़ जाते हैं। अनेक बार सुव्यवस्थित योजना बनाने के बाद निश्चित प्रयासों के साथ आगे बढ़ेगे- इस चतुराई में समय निकल जाता है। कई बार सब कुछ सुविधाजनक होते हुए भी कुछ लोग मात्र अपना मन न होने के चलते सही समय से चूक जाते है! दूर तक देख न पाने के चलते आंरभ का साहस नहीं जुटा पाते। अमावस्या की रात में आपको किसी जंगल की यात्रा करने की अवसर आए तो टार्च के बाद भी दूर तक मार्ग नहीं दिखेगा। किंतु जैसे-जैसे आगे बढ़ेंगे, मार्ग दिखता जाएगा। जीवन में भी ऐसा ही होता है अनेक बार। भले ही हमें पूरा योजनापथ दृष्टिगत न हो किंतु जितना दिखता है उसी के अनुसार बढ़ते रहना पड़ाव तक पहुँचने की गारंटी है। यदि प्रारंभ ही नहीं किया तो वर्षा निकल जाने के बाद आप जहाँ थे, वहीं ठहरे रहेंगे। काल के थपेड़ों से आपके संकल्प ध्वस्त हो जाएगें। हृदय में दृढ़ संकल्प था इसलिए राह स्वत: बनती गई। अनेक विघ्न-विरोध के बीच लोगों को सदाचार-सेवा और विश्व शांति का मार्ग की राह दिखाने का असंभव कार्य किया। अपने जीवन के माध्यम से ही ऐसे महापुरूष हमें सच्ची लगन-एकाग्रता और टालमटोल से मुक्ति की सीख देते हैं। अत: अनवरत प्रयास ही अपने जीवन को आनन्द से भरने में अतिआवश्यक है। अत: भवातीत ध्यान योग शैली का प्रतिदिन प्रात: एवं संध्या को 10 से 15 मिनट का नियमित अभ्यास आपके लक्ष्य को प्राप्त करने का सामर्थ्य प्रदान करेगा अत: अपने जीवन में अभ्यास कि निरंतरता को बनाए रखें क्योंकि जीवन आनंद है।



।।जय गुरूदेव जय महर्षि।।