महर्षि प्रवाह

गुरुदेव की कृपा का फल
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ब्रह्मचारी गिरीश जी
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समय बहुत बलवान होता है, अपने-अपने समय के बड़े- बड़े सूरमाओं का आज नामो निशान नहीं है। एक गीत में सुना कि अपने समय में जिनकी इच्छा अथवा आज्ञा के बिना उनके साम्राज्य का एक पत्ता भी नहीं हिलता था, वे राजे-महाराजे चक्रवर्ती जो अपने परिवार के हर सदस्य की मृत्यु पर भव्य स्मारक बनवा दिया करते थे, उनका स्वयं का अंतिम संस्कार कहाँ हुआ, ये किसी को ज्ञात नहीं है। समय से कोई विजयी नहीं हो पाया। ऐसा लगता है कि समय, इतिहास और प्रकृति ये तीनों एक ही परिवार के अत्यन्तघनिष्ठ सम्बन्धी हैं। जो कुछ भी घटित हो रहा है, वह इन तीनों के द्वारा या इन तीनों के संज्ञान में हो रहा है।


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 गुरुदेव की कृपा का फल

ये विश्व प्रशासन का नारा जो ये आज है, ये ज्ञानयुग के ग्यारहवें वर्ष की अनुभूति हो रही है। वो इसीलिये हो रही है कि ज्ञानवृक्ष-वेद की सत्ता ज्यादा गहराई से मानवीय चेतना में उतरी है और जैसे-जैसे ज्ञान गहराई में जाता है विश्व चेतना में वैसे-वैसे क्रियाशक्ति सारे विश्व को वैश्विक क्षेत्र में प्रभावित करके ऊपरी व्यवहार के क्षेत्र में उत्तमता लाते जाते हैं, लाते जाते हैं, लाते जाते हैं।
ये अनुभूति की ज्ञान की गहराई में क्रियाशक्ति की सफलता है। ये अनुभूति की योगिक अन्तर्मुखता में सामाजिक समस्याओं का, राष्ट्रीय समस्याओं का हल है, ये दुर्लभ अनुभूति है। गुरु दिखाते हैं ये दुर्लभ तत्व को, गुरु एक तत्व में समझाते हैं, जड़ में पानी डालो फल-फूल-पत्ते सब हरे-भरे रहेंगे। जितना अधिक व्यवहार में उन्नति करना चाहते हो उतना अधिक भीतर समाहित रहो योगस्थ: कुरु कर्माणि और जब से योगस्थ होना छूटा, जब से योगिक अनुभूतियाँ कठिन होने लगीं, प्रचार की गड़बड़ी से इसको अपने एक शब्द में डाल देते हैंक कलियुग का प्रभाव जो भी हुआ हो, लेकिन सारे कलियुग का प्रभाव सारे विश्व में हो, किन्तु गुरुदेव की कृपा सर्वोपरि है। वह सारे कलियुग के प्रभाव को मिटा देने में समर्थ है।
गुरुकृपा से प्रत्येक व्यक्ति के लिए अन्तर्मुखता इतनी सरल हो गई है, जिसके कारण व्यवहार की पूर्णता, व्यवहारिकता, सर्व समर्थता सबके लिए इतनी सरल हो गई है जिसका हिसाब नहीं। अब स्थिति ये है, गुरु कृपा से हम लहर परत-परत दिखा रहे हैं। किन-किन परतों में गुरुकृपा अपने साथ है, ये योगिक चेतना बनाना सरल हुआ। क्या सरल हुआ, सारे विश्व में समस्याओं को शांत करने का एक सुगम उपाय मिला। क्या हुआ, सामूहिक भावातीत ध्यान में सिद्धियों का अभ्यास करके यदि सामूहिक सिद्धों की संख्या 7000 हो जाये, यहीं बैठे-बैठे राम झरोखे बैठकर सारे विश्व की चेतना को सदा पावन करते रहेंगे।


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